हमारा मानत्य
समरसता – जहाँ सब अपने-अपने स्वरूप में पूजनीय हों।
धर्म का जागरण, पर किसी के विरोध में नहीं।
बिना संगठन के कोई सांस्कृतिक जीवन जीवित नहीं रह सकता।
युवा शक्ति को धर्म और राष्ट्र के लिए समर्पित करना।
सभी सनातन धाराओं को एक सूत्र में बाँधना।